भाग .12
"अनन्त फल प्रदायिनी है प्रभु शरणागति"

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प्रभु शरणागति

 हे मेरे प्यारे दोस्तोँ मेरी आप मित्रोँ से विनयपूर्ण आग्रह है कि समर्पण(शरणागति)की महान भावना को हल्के मे ना लीजिएगा ।
क्योँ कि ये भावना इतनी फलदायी है कि इसकी कल्पना भी नही कर सकते 
फिर भी मेरे अनुभवोँ के अनुसार ये -
1 . शान्ति प्रदायिनी
2 .मोछ प्रदायिनी
3 .धर्म पथिकता(कर्तब्यपरायणता)
4 .विवेकशीलता
5 .समदर्शिता
6 .ज्ञान दायिनी
7 .प्रेम ही प्रेम प्रदायिनी
8 . परम शान्ति
9 .निष्कर्मता
10 .भक्ति
11 .अनासक्ति
12 . दुराग्रहोँ से रछण
13. अनहोनी से सुरक्षा
14. माया (भावनाओं के सागर) से सुरक्षा
....आदि
समय आने पर इन सभी गुणोँ की विस्तृत जानकारी भी पोस्ट करूँगा ।
हे प्रिय मित्रोँ उपरोक्त गुण जिस हृदय मेँ समाहित हो उसे अपने जीवन पथ पर कोई कठिनाई नही आती ।
क्योँ कि -
परमात्मा अपने आश्रितोँ के सदा सहायक होते हैँ । हमारा जीवन उन्ही की इच्छानुसार सम्पादित होने लगता है ।
इसी लिए मै बार-बार आप मित्रोँ से निवेदन करता रहा हूँ - आप स्वयँ प्रभु परायण बनेँ ही साथ-साथ अपने बच्चोँ और स्वजनोँ को भी शरणागत बनाऐँ ।
शरणागति के भाव -
 "हे जगदीश्वर ,हे जगतश्रेष्ठ ,
हे दीनानाथ मुझ अग्यानी को ,पाप के भागी को अपनी शरण मेँ लीजिए ।


हे जगदीश्वर मेरी जीवन नैइया के खेवनहार अब आप ही है
 अतः इस जीवन की पतवार अब आप ही सम्भालिए । 

"हे परमेश्वर"  मैँ अपना सर्वस्व आपको अर्पण करता हूँ । हे मेरे नाथ मेरे इस तुच्छ सर्मपण को स्वीकार कीजिए ।"


इस प्रार्थना को करने का कोई यम-नियम नही है केवल पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से हृदयगत होकर जब चाहेँ तब करेँ ।


इसके बाद से आप स्वयँ उस पराशक्ति की प्रेरणा और कृपा का अनुभव करने लगेँगे ।
अब रही बच्चोँ की बात तो इसका अभी कुछ ही दिनोँ पहले ताजा अनुभव प्राप्त हुआ -
किशोरावस्था मेँ कदम रखती मेरी बड़ी भतीजी जिसके गुण-स्वभाव ज्यादा अच्छे ना थे । जिसके कारण हमारी देवी जी भतीजी से सदा ही चिढ़ती रहती थी ।
(ये सदा ही ध्यान रखिएगा मित्रोँ - हमारा गुण-स्वभाव जन्मगत होता है ज्योतिष शाष्त्र उन्ही के आधार पर जन्म कुण्डली तैयार करता है ।)
लगभग डेढ़ वर्ष पहले मैने अपनी भतीजी को अपने अनुभवोँ का एक पर्चा पढ़ाते हुए कहा - "बेटा मैँ तुम्हे ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए बाध्य नही करूँगा ।
केवल मेरी तरफ से इतना ही करना कि शाम को सोने से पहले और सुबह जागने के बाद ईश्वर से इतना ही प्रार्थना करना "हे जगदीश्वर मुझे अपनी शरण मेँ लीजिए ,मेरी जीवन नैइया के खेवइया आप ही हैँ ।"
अभी कुछ दिनोँ पहले गाँव से दिल्ली आई तो मुझे उसमेँ बदले हुए सुन्दर भाव और अध्यात्मिकता के प्रति गहरी प्रवृति देखकर परम सन्तोष हुआ ।
भतीजी के निन्दक अब प्रशँसक हो चुके थे ।
अब मै आप मित्रोँ से पुनः यही कहूँगा "शँसय त्यागिए ,
शरणागत बनिए बनाइए ।
जगदीश्वर आप सभी मित्रोँ को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।
अगले भाग मेँ ग्यान और वैराग्य की प्राप्ति के अनुभवोँ को बाँटने का प्रयास करूँगा ।
।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।https://prabhusharanagti.blogspot.com/2020/01/1.html?m=1