भाग .12
"अनन्त फल प्रदायिनी है प्रभु शरणागति"
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हे मेरे प्यारे दोस्तोँ मेरी आप मित्रोँ से विनयपूर्ण आग्रह है कि समर्पण(शरणागति)की महान भावना को हल्के मे ना लीजिएगा ।
"अनन्त फल प्रदायिनी है प्रभु शरणागति"
🙏🙏🙏
प्रभु शरणागति |
क्योँ कि ये भावना इतनी फलदायी है कि इसकी कल्पना भी नही कर सकते
फिर भी मेरे अनुभवोँ के अनुसार ये -
1 . शान्ति प्रदायिनी
2 .मोछ प्रदायिनी
3 .धर्म पथिकता(कर्तब्यपरायणता)
4 .विवेकशीलता
5 .समदर्शिता
6 .ज्ञान दायिनी
7 .प्रेम ही प्रेम प्रदायिनी
8 . परम शान्ति
9 .निष्कर्मता
10 .भक्ति
11 .अनासक्ति
12 . दुराग्रहोँ से रछण
13. अनहोनी से सुरक्षा
14. माया (भावनाओं के सागर) से सुरक्षा
....आदि
समय आने पर इन सभी गुणोँ की विस्तृत जानकारी भी पोस्ट करूँगा ।
हे प्रिय मित्रोँ उपरोक्त गुण जिस हृदय मेँ समाहित हो उसे अपने जीवन पथ पर कोई कठिनाई नही आती ।
क्योँ कि -
परमात्मा अपने आश्रितोँ के सदा सहायक होते हैँ । हमारा जीवन उन्ही की इच्छानुसार सम्पादित होने लगता है ।
इसी लिए मै बार-बार आप मित्रोँ से निवेदन करता रहा हूँ - आप स्वयँ प्रभु परायण बनेँ ही साथ-साथ अपने बच्चोँ और स्वजनोँ को भी शरणागत बनाऐँ ।
शरणागति के भाव -
"हे जगदीश्वर ,हे जगतश्रेष्ठ ,
हे दीनानाथ मुझ अग्यानी को ,पाप के भागी को अपनी शरण मेँ लीजिए ।
हे जगदीश्वर मेरी जीवन नैइया के खेवनहार अब आप ही है
अतः इस जीवन की पतवार अब आप ही सम्भालिए ।
"हे परमेश्वर" मैँ अपना सर्वस्व आपको अर्पण करता हूँ । हे मेरे नाथ मेरे इस तुच्छ सर्मपण को स्वीकार कीजिए ।"
इस प्रार्थना को करने का कोई यम-नियम नही है केवल पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से हृदयगत होकर जब चाहेँ तब करेँ ।
इसके बाद से आप स्वयँ उस पराशक्ति की प्रेरणा और कृपा का अनुभव करने लगेँगे ।
अब रही बच्चोँ की बात तो इसका अभी कुछ ही दिनोँ पहले ताजा अनुभव प्राप्त हुआ -
किशोरावस्था मेँ कदम रखती मेरी बड़ी भतीजी जिसके गुण-स्वभाव ज्यादा अच्छे ना थे । जिसके कारण हमारी देवी जी भतीजी से सदा ही चिढ़ती रहती थी ।
(ये सदा ही ध्यान रखिएगा मित्रोँ - हमारा गुण-स्वभाव जन्मगत होता है ज्योतिष शाष्त्र उन्ही के आधार पर जन्म कुण्डली तैयार करता है ।)
लगभग डेढ़ वर्ष पहले मैने अपनी भतीजी को अपने अनुभवोँ का एक पर्चा पढ़ाते हुए कहा - "बेटा मैँ तुम्हे ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए बाध्य नही करूँगा ।
केवल मेरी तरफ से इतना ही करना कि शाम को सोने से पहले और सुबह जागने के बाद ईश्वर से इतना ही प्रार्थना करना "हे जगदीश्वर मुझे अपनी शरण मेँ लीजिए ,मेरी जीवन नैइया के खेवइया आप ही हैँ ।"
अभी कुछ दिनोँ पहले गाँव से दिल्ली आई तो मुझे उसमेँ बदले हुए सुन्दर भाव और अध्यात्मिकता के प्रति गहरी प्रवृति देखकर परम सन्तोष हुआ ।
भतीजी के निन्दक अब प्रशँसक हो चुके थे ।
अब मै आप मित्रोँ से पुनः यही कहूँगा "शँसय त्यागिए ,
शरणागत बनिए बनाइए ।
जगदीश्वर आप सभी मित्रोँ को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।
अगले भाग मेँ ग्यान और वैराग्य की प्राप्ति के अनुभवोँ को बाँटने का प्रयास करूँगा ।
।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।https://prabhusharanagti.blogspot.com/2020/01/1.html?m=1
1 टिप्पणियाँ
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।