भाग .11
"प्रभु जी के द्वारा मेरे सम्पूर्ण अहँ-अहंकार का नाश करना और जीवन के सर्वश्रेष्ठतम मार्ग का दर्शन कराना"
🙏🙏🙏
मुझे अपना जीवन खोने का जरा सा भी भय ना था परन्तु दुख अवश्य था कि किसी पराशक्ति के छल के कारण मृत्यु का वरण करना पड़ रहा था ।
जीवन का शर्त हारने के बाद मेरी अंतरात्मा पूरी तरह आत्महत्या का समर्थन कर रही थी
इसलिए
कम्पनी से छूटते ही सीधे यमुना नदी के मध्य मेँ पुल पर पहुँच गया ।
अश्रु धारा अब भी थमने का नाम नही ले रही थी ।
अब निर्णय लेना था कि कैसे मरा जाऐ - नदी मेँ कूद जाऊँ ...या ट्रेन के नीचे ...।
तभी अन्तर्मन फिर अपना विचार प्रकट किया कि - "शिव तुम्हारे आत्महत्या कर लेने पर तुम्हारा ये शरीर सड़-गल कर यूँ ही नष्ट हो जाऐगा ।
इससे तो अच्छा है इस शरीर को निस्वार्थ सेवा मेँ लगा दो ।"
अन्तर्मन की सलाह दिल को भा गई अतः फिर एक सँकल्प ले लिया ।
"आज से मैँ स्वयँ के लिए मर गया । अब जियूँगा तो केवल निस्वार्थ सेवा के लिए ।"
निःस्वार्थ सेवा के एक संकल्प ने मुझे आत्महत्या से तो बचा लिया
परन्तु अब मेरी जिज्ञासा अति प्रबल हो चुकी थी ये जानने के लिए कि
"आखिर कौन है जो मुझे कठपुतली की तरह नचा रहा है ।"?
कौन है वो जो मुझे जैसा चाहता है वैसा ही सोचता हूं,?
कौन है वो जो मुझे जैसा चाहता है मैं वैसा ही करता हूं,?
कौन है वो जो जैसा चाहता है अन्य लोग मुझसे वैसा ही ब्यवहार करते हैं?
किसी बुजुर्ग के सम्पर्क मेँ आते ही ये विचित्र सवाल कर बैठता कि
"मैँ" मैँ नही तो "मैँ" कौन हूँ ?
जब कुछ लोगोँ का जवाब अध्यात्मिक पाया तो दूसरा सवाल करने लगा -
आप ईश्वर की पूजा क्योँ करतेँ है ?
ईश्वर के बारे में आपका क्या अनुभव है?
किसी का भी उत्तर मुझे सन्तुष्ट ना कर पाया क्योँ कि उनके जवाब मेँ स्वयँ के ही समान घटनाओँ की अनुभूति ढूँढ़ने मेँ लगा था ।
हे मेरे प्यारे दोस्तोँ इस सँकल्प के माध्यम से अपना जीवन तो बचा लिया ।
परन्तु अब समस्या थी कि "कैसी सेवा" इस विषय मेँ बाद मेँ बात करेँगे क्योँ कि अभी प्रभु शरणागत भक्त वत्सल की और भी लीलाऐँ बाकी थी ।
जिनमेँ दुर्लभतम स्थिति "वैराग्य" और "निष्कामता" मुख्य है ।
हे प्रिय मित्रोँ इन घटनाओँ की पहेली को सुलझाने मेँ मुझे तो महीनोँ बीत गये थे । परन्तु आप लोगोँ को अभी बता देता हूँ -
जैसा कि भाग .3 मे जिक्र किया था कि मैने अपने जीवन का समस्त भार परमात्मा को अर्पण करते हुए "जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की माँग की थी ।
आज जगदीश्वर वही श्रेष्ठतम मार्ग पर चलाने के लिए ही मुझसे मेरा सर्वस्व (अहं-अहंकार और कर्ताभाव) लूट ले गये थे ।
अन्यथा यदि मुझमेँ मेरा अहँ जाग्रत होता तो मेरा कोई भी निस्वार्थ सेवा का कार्य निस्वार्थ कहाँ रह जाता ।
हर कार्योँ मेँ कर्ता का भाव आना स्वाभाविक था ।
🙏🙏🙏
प्रिय मित्रोँ "सँशय त्यागिए प्रभु की शरणागत बनिए ।"
।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।
1 टिप्पणियाँ
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।