भाग .8
काम (वासना,चरित्रहीनता)
हमारे मन में निवास करने वाली असंख्य भावनाओं
में एक है काम-वासना
जो हमारे मन-मस्तिष्क पर बड़ी ही तीव्रता से छा जाता है और हमारे सम्पूर्ण विवेक को अछम कर हमें अपना गुलाम बना लेती है।
परन्तु
ये मेरा अनुभव है और पूर्ण विश्वास भी कि जब हम ईश्वर परायण अर्थात शरणागत होतें हैँ तो हमारे कदम ऐसी वृत्तियोँ से कभी विचलित नही होते ।
हे मेरे प्यारे दोस्तोँ जगदीश्वर ने अपना गुरू का दायित्व निभाते हुए सत्य बोलने और लोभ ना करने के सँकल्प के बाद मोह की विचित्र स्थिति से अवगत कराया ।
अभी मोह की स्थिति को पहचान भी ना पाया था कि मेरे मन मेँ वासना(काम भावना) ने अपनी जगह बना लिया ।
स्वयँ को मन ,वचन ,कर्म से शुद्ध बनाने की सँकल्पबद्धता के कारण सर्वप्रथम मन की वासनात्मक स्थिति से निपटने के लिए अपने विशुद्ध प्रेम सँगीता को याद करके मन को तुरंत शुद्ध कर लिया करता था
परन्तु मेरा ये प्रेममयी हथियार धीरे-धीरे निष्क्रिय होता गया ।
अपने मन मेँ उठ रही वासनात्मक विचारोँ और नजरोँ से काफी ब्यथित रहने लगा ।
अब मुझे भी लगने लगा कि ये कोई साधारण रोग ना होकर कोई गम्भीर समस्या है ।
इसलिए इसकी जड़ खोजने लगा तो पाया कि ये अवगुण निगाहोँ के माध्यम से दिल और दिमाग मेँ उतरता है ।
अब मैँ बड़ा ही खुश हुआ कि मन की शुद्धि का सहज और सरल मार्ग मिल गया ।
परन्तु ये क्या सारी आशाऐँ एक ही पल मेँ धराशाई हो गई अपने इस उपाय के निष्क्रियता पर ।
झुकी हुई नजरेँ कब किसी बहन-बेटी के वछ स्थल पर टिक जाती दिमाग को भी इसका अहसास भी 15-20 सैकेँण्ड बाद होता ।
मेरे दुख की सबसे बड़ी वजह मेरी स्वयँ की "भाभी माँ" थी । उन्हेँ भी अपनी इस बुरी नजरोँ से बचा ना पाता था ।
जिससे मुझे बड़ी हैरानी और आत्मग्लानि होती।
अब मेरा ध्यान अपने खान-पान पर गया । अपने ज्ञान के सामर्थ्य अनुसार प्याज और चाय भी पीना बन्द कर दिया
परन्तु मन की अशुद्धता पर कोई फर्क ना पड़ा ।
अब अपने मित्रोँ से भी इस आशय मेँ सलाह लेना शुरू कर दिया कि शायद किसी के माध्यम से किसी दवा का पता चल जाऐ कामुक विचारोँ के दमन के लिए ।
कुछ मित्रोँ ने बताया कि दवा तो अवश्य होती है जिसका प्रयोग कर के जैन मुनि स्वयँ को वासना से पूरी तरह मुक्ति पा जातेँ है ।
ये जान कर मुझे बेहद सन्तोष हुआ परन्तु मुझे डर भी था कि
कहीँ सँगीता की शादी मुझसे ही हो गई तो अपना पति धर्म कैसे निभा पाऊँगा ।
इस लिए इस तरह के दवा के प्रयोग को सँगीता के विवाह तक स्थगित करना पड़ा ।
प्यारे दोस्तोँ अब वो दिन भी शीघ्र आने वाला था जब "श्री भगवान" मेरे मन का सम्पूर्ण अहँ-अहंकार का नाश करते हुए जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलने के लिए सँकल्पबद्ध भी करवाते हैँ ।
इस लिए आप मित्रोँ से अनुरोध है कि पूरे ध्यान और विश्वास भाव के साथ इन पोस्टोँ को पढ़ते रहिएगा कि
जगदीश्वर मुझमें कैसे एक संत हृदय का निर्माण करते हुए भवसागर की पहचान और मानवीय विवशताओं का दर्शन भी कराते जा रहे थे।
अगले भाग 9 में फिर मिलेंगे...
🙏🙏🙏प्रभु जी आप सभी मित्रोँ को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।
।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।
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