भाग .26
सप्रेम सादर नमन प्यारे दोस्तोँ

काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहँकार आदिमाया का दर्शन करने के पश्चात 
शांति ,प्रेम ,आनंद ,वैराग्य , निष्काम भाव और स्थितप्रज्ञता आदि गुणोँ मेँ स्नान करने के बाद भी मुझमेँ सेवार्थ जीवन जीने की भावना प्रबल थी ।

क्योँ कि मेरे लिए ये भुला पाना असम्भव था कि जो उधार की जिन्दगी मैँ जी रहा हूँ वो निस्वार्थ सेवा भाव की रिणी(कर्जदार) है ।

मेरी आय इतनी ही थी जितनी पारिवारिक आवश्कताओँ की पूर्ति हो सके ।

"श्री भगवान" से अक्सर एक ही शिकायत किया करता था कि -
"हे पिता श्री" मेरा ये जीवन तो स्वार्थ मेँ ही बीता जा रहा है फिर आपके द्वारा सेवार्थ जीवन के लिए सँकल्पित कराने का क्या लाभ ।
अपनी ब्याकुलता के कारण कभी-कभी रो भी पड़ता था ।

कई सालोँ बाद लगभग 2012 मेँ "यू ट्यूब" पर रामानन्द कृत "श्री कृष्णा" का "भागवत गीता" का पार्ट देखने को मिला ।

हर एक भाग को देख कर मेरी आँखेँ भावविभोर हो कर अश्रुपात करने लगती ।

कारण ये था जो अध्यात्मिक ज्ञान और स्थितियाँ "श्री भगवान" अर्जुन को प्रदान कर रहे थे । वो स्थितियाँ स्वयँ मेँ देख रहा था ।

अन्तिम भाग देखते और समझते ही मैँ बिलख-बिलख कर रो पड़ा ।

मेरा रोम-रोम रोमान्चित हो रहा था । हृदय प्रभु जी को बार आभार प्रकट कर रहा था ।

"धन्य हैँ पिता श्री " "हे शरणागत भक्तवत्सल" आपकी लीला भी अदभुत ।

मुझ अग्यानी के एक अति साधारण से "समर्पण" को भी स्वीकार कर लिया ।।

"गीता" के उस अन्तिम भाग मेँ अर्जुन ने "श्री भगवान" से कहा - "प्रभु अब मुझे कुछ नही पूछना कुछ नही जानना । यदि आप मेरे प्रश्नोँ की सीमाओँ से परे मुझे कुछ बताना चाहेँ तो इसके लिए मैने अपने मन की झोली फैला रखी है ।

इस पर "श्री भगवान" बोले - "हे अर्जुन" यदि वो जानना चाहते हो जो अब तक मैने तुम्हेँ नही बताया तो सुनो - मैने अब तक जिन धर्मोँ ,पूजा विधियोँ और योग साधनोँ की शिछा तुम्हे दी है सब भूल जाओ और मेरी शरण मेँ इस प्रकार आओ जैसे कोई बालक रोता-भागता अपनी माँ की गोद मेँ पनाह लेता है ।

और जिस प्रकार एक माँ अपने बालक को नहला-धुला कर बालक का सारा गन्ध और मैल छुड़ा कर स्वच्छ बना देती है ।

उसी प्रकार मैँ तुम्हारे सभी पापोँ से मुक्त कर शाश्वत शान्ति और मोछ प्रदान करूँगा ।।


हे मेरे प्यारे दोस्तोँ "श्री भगवान" के इस कथन पर तनिक भी सँदेह ना कीजिएगा ।


हे प्रिय मित्रो इसी कारण ही मैने अपने जीवन की मुख्य घटनाओँ को उदाहरण स्वरूप आप सभी के सम्मुख रखता जा रहा हूँ और आशा करता हूँ कि आप सब इसका भरपूर लाभ उठाऐँगे ।

"शरणागत की गति न्यारी"

।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।