भाग .6
क्रोध -"सावधान" क्रोध अन्धा होता है ।

मेरे प्यारे दोस्तोँ एक दिन कम्पनी से निकल कर तेजी से घर की ओर पैदल निकल पड़ा ।
अचानक पीछे से किसी ने मेरा स्वेटर पकड़ लिया मुझे हल्का सा झटका लगा
क्रोध के वशीभूत हो कर मेरे आँखोँ के आगे अँधेरा छा गया ।
पलट कर उस लड़के का कालर पकड़ कर वार करने ही जा रहा था कि अचानक ही आँखोँ के आगे से अँधेरा समाप्त हो गया । क्रोध शून्य हो गया ।
तभी उस लड़के नेँ मुस्कराते हुए पूछा - "क्या हुआ गाँधी जी" ?
कालर तो छोड़ दिया परन्तु मै स्वयँ भी निरूत्तर था कि आखिर मुझे अचानक हुआ क्या था ।

"हे राम" आखिर इतना भयानक क्रोध मुझमेँ आया कहाँ से ?
जरा सी देर और ठहरा होता तो बेचारे का 8 या 10 दाँत तो टूट गया होता ।
शायद इस विषय मेँ कोई चिन्तन ना करता यदि ऐसा ही क्रोध एक अन्य ब्यक्ति पर ना आया होता ।
आत्मचिन्तन करने पर पाया कि - मुझे अक्सर उन दोनोँ की बुराइयाँ सुनने को मिलती थी ।
जिसके कारण मेरे मन मेँ ईर्ष्या की चिन्गारी सुलग रही थी ।
जो जरा से हवा के झोँके से ही भीषण क्रोध रूपी अग्नि का रूप धारण कर बैठी ।
उसी समय से मैने दृढ़ निश्चय कर लिया कि -
"आज से ना तो किसी की बुराई करूँगा , ना किसी मेँ बुराई देखूँगा और ना ही किसी की बुराई सुनूँगा ।"
अपने इस निर्णय से मेरा समाज मे उठना-बैठना भी कम हो गया क्योँ कि
आज की सामाजिकता मेँ आत्मचिँतन कम और परनिन्दा बहुत अधिक होती है ।
जिसके कारण गृहक्लेश , आपसी राग-द्वेष , खून-खराबा भेदभाव आदि इन्ही कारणोँ से उपजतेँ हैँ ।
प्यारे दोस्तोँ यदि आप भी क्रोध की भावना से ग्रस्त हैँ तो इसकी जड़ (बुराई देखना ,सुनना और करना) को ही काट डालो ।
प्रत्येक इन्सान मेँ कुछ ना कुछ अच्छाइयाँ होती है ।
यदि हम केवल उन अच्छाइयोँ पर ध्यान देँ तो हमारे भीतर प्रेम और शान्ति का प्रसार होने लगेगा ।
और यदि हम प्रभु जी से आश्रय माँगेँ तो हमारे भीतर अच्छे गुणोँ का जन्म स्वयँ ही होने लगेगा ।
इस तरह "श्री भगवान" ने क्रोध का ज्ञान कराया ।
परन्तु
मुझे नही पता था कि "श्री योगेश्वर ने मेरे द्वारा निवेदित गुरू के रिश्ते को स्वीकार कर अपनी लीला दिखा रहेँ है ।
भाग .7 मेँ मोह की घटना को लिखने का प्रयास करूँगा ।
🙏।।"जय जय श्री राधेकृष्णा"।।