भाग.16
"प्रभु जी के द्वारा वैराग्य अनुभव कराने की लीला (भाग-2)"
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प्रभु जी अपने भक्तों के साथ कैसी-कैसी लीलाएं और खेल खेलते हैं ये प्रभु जी के सच्चे भक्त और श्रद्धालु ही समझ सकते हैं
वो भी तभी समझ सकते हैं जब प्रभु जी स्वयं जना दें।
उस पर यदि कोई पूर्ण समर्पण और पूर्ण विश्वास से मेरी तरह कोई प्रभु जी को गुरु मान ले तो
उसके जीवन में प्रभु जी की अनन्य लीलाऐं-कृपाऐं होना स्वाभाविक ही हो जाती हैं
जैसे कि मेरे जीवन में प्रभु जी एक के बाद एक अनुभव कराते जा रहे थे
सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा प्रभु जी अपनी माया के द्वारा करा रहे थे।
मेरे प्यारे दोस्तों मैंने जैसा कि पिछले भाग में बताया कि
घर आये संगीता (जो कि मेरे जीवन साथी के रूप में मेरी पहली और आखिरी पसंद थी) के रिस्ते को एक पत्र के माध्यम से मना कर दिया था
जवाब में संगीता के घर से आए पत्र को पढ़कर घर के अन्य सदस्य भैया भाभी काफी परेशान हो गए।
जिसमें भाभी जी कुछ ज्यादा ही अधीर थी।
उनकी अधीरता का सबसे बड़ा कारण यह था कि मैंने अपने मन की बात पहले ही सबको बता रखा था कि- मेरी शादी चाहे संगीता से हो या ना हो परंतु किसी और से कभी नहीं करूंगा।
अब संगीता जो कि भाभी की छोटी बहन थी इसलिए वह मुझे मायके ले जा जाकर बिगड़ी बात बनाना चाहती थी।
काफी समझाने-बुझाने के बाद मैं भाभी जी के साथ चलने के लिए तैयार तो हो गया
परन्तु
मैं उस दिन मंदिर में जाकर खूब रोया।
मुख से बस एक ही प्रार्थना निकल रहा था - "हे पिताश्री" "मैं भैया-भाभी जी के कहने पर बिगड़ी बात बनाने तो जा रहा हूं परंतु बात बनाना और बिगाड़ना आपकी इच्छा पर निर्भर है जैसा आप चाहें वैसा कीजिए"
"मैं तो बस इतना चाहता हूं कि मेरा जीवन दूसरों के सेवार्थ में बीते।"
अगले दिन मैं भाभी जी के साथ उनके मायके पहुंच गया था
परंतु यह क्या पुनः वही विचित्र बात हो गई
अचानक मेरे मन में संगीता के प्रति मोह इतना बढ़ गया कि संगीता से विवाह न होने की कल्पना भी मृत्यु से अधिक भयावह दिखाई दे रही थी।
मैं भाभी जी के मायके लगभग 3 दिनों तक रहा
इस दौरान मुझे संगीता की बातों से भी प्रेम और स्थितियां सामान्य ही दिखाई दी।
जिसके कारण मेरे मन में संगीता के प्रति "मोह" बहुत ही भयावह रूप ले चुका था।
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मेरे प्यारे भाइयों बहनों ये मोह मन की आसक्ति का दूसरा नाम है
हालांकि मोह की अनुभूति प्रेम के जैसा ही होता है परंतु
इसमें विशेष गुण यही है कि
मोह हमें अंधा कर देता है और प्रेम हमें जागृत रखता है।
चौथे दिन जब मैं भाभी जी के साथ दिल्ली वापसी के लिए स्टेशन आने के बाद
अचानक भाभी ने गंभीरतापूर्वक नाराजगी दिखाते हुए संगीता का रिश्ता कहीं और तय हो चुकने की बात कहने लगी।
मेरे कानों में तो जैसे गर्म लोहा पिघलाकर डाल दिया गया हो,
मन मयूरा जो अब तक सुंदर सपने देख देख कर नाच रहा था
अब वही मन जैसे मृत्यु शैया पर अपनी अंतिम सांसे लेने लगा,
कदम लड़खड़ाने लगे थे आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी थी
ऐसा लग रहा था जैसे मेरी मृत्यु का समय आ गया हो दिल्ली वापस पहुंच पाना भी असंभव सा दिखने लगा था।
फिर भी मुझे अपनी मृत्यु का भय या चिंता नहीं था केवल चिंता एक ही थी कि
मैं भाभी और भतीजी को सकुशल दिल्ली वापस पहुंचा सकूं।
दूसरे दिन दिल्ली ठीक-ठाक तो पहुंच गया
उस दिन रात्रि के समय पूजा करते वक्त मैंने प्रभु से बस एक ही प्रार्थना की कि -
"जैसी आपकी इच्छा पिताश्री, यह शरीर तो आखिर आपका ही है।"
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आज की रात्रि मेरे जीवन की अंतिम रात्रि होगी।
परंतु यह क्या रात ही रात में मुझमें न जाने क्या परिवर्तन आया कि
मैं स्वयं भी हैरान था हैरानी की बात तो यह थी कि जो मन शाम तक अशांति और पीड़ा से ग्रस्त था वही बन संध्या वेला के समुद्र की तरह शांत और स्थिर था
आशा और निराशा की समस्त लहरें अब पूरी तरह शांत हो चुकी थी
अपनी इस मानसिक स्थिति को देखकर मेरा हृदय प्रभु जी के प्रति कृतज्ञता और परम संतोष से भर गया।
संसार की अब किसी भी विषय वस्तु के प्रति कोई आसक्ति मन में शेष न रही,
क्यों कि मन की समस्त स्वप्निल क्रियाएं समाप्त हो चुकी थी।
कुछ दिनों बाद ही भाभी जी के पीहर से संगीता का पत्र भी आ गया जिसमें अन्यत्र रिश्ता तय होने की बात को मजाक बताया था।
साथ ही संगीता ने चेतावनी भी दी थी कि - "शिवप्रसाद जी इस बार यदि आपने विवाह से इनकार किया तो मैं कुएं में कूदकर जान दे दूंगी"
मैं अपने मानसिक स्थिति को देखकर बड़ा ही हैरान था
कि जिस पत्र को पढ़कर मेरे मन को खुशी से पागल हो जाना चाहिए था
वह मन भावना शून्य हो शांत पड़ा था
पत्र के जवाब में मैंने कई पत्र लिखने का भी प्रयास किया परंतु
पत्र लिखने के बाद जब पढ़ता तो ऐसा लगता जैसे किसी 5-6 साल के बच्चे ने अपनी मानसिकता के अनुसार पत्र लिख दिया हो
जबकि इससे पूर्व न जाने कितने पत्र संगीता को लिखे थे तथा पत्राचार के कारण ही मेरा मन संगीता के प्रति मोहित हुआ था।
संगीता के मन की शांति के लिए कई पत्र लिखने के प्रयास तो किए परंतु
सफलता नहीं मिली
क्योंकि "श्री भगवान" ने मेरे मन और बुद्धि को किसी अबोध बालक की भांति ही बना दिया था।
मेरे प्यारे भाइयों बहनों अगले भाग में हम वैराग्य और मोह की स्थिति के बारे में और भी बहुत सारी चर्चा करेंगे
ह्रदयगत शुभकामनाओं के साथ फिर मिलेंगे
🙏
"प्रभु जी आप सबको अपना निर्मल आश्रय प्रदान करें"
🙏 जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्त वत्सल की🙏
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
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