🙏ॐ।।जय श्री हरि।।ॐ
भाग.4
मेरे प्यारे दोस्तोँ पिछले भाग मेँ आपको जो भी बताया वो मेरी कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा है इस लिए मुख्याँश फिर से बताता हूँ ।
अपने सच्चे प्रेम को पाने की चाहत मुझे मन्दिर तक खीँच लाई ।
परन्तु अन्तर्द्वन्द के कारण ईश्वर को ही माता-पिता और गुरू मानते हुए स्वयँ को अर्थात अपने जीवन का समस्त भार परमात्मा को सौँपते हुए जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की प्रार्थना कर के वापस लौट गया था ।
प्यारे दोस्तोँ यहीं से जगदीश्वर की लीला का विस्तार लेना प्रारम्भ हो गया ।
अपनी लीलाओँ मेँ "शरणागत भक्तवत्सल" ने काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहँकार और वैराग्य का ज्ञान कराते हुए निष्कर्मता ,समदर्शिता जैसे सुन्दर भाव मेँ स्थित कर दिया ।
हस्तरेखा का भी थोड़ा बहुत ज्ञान है अपने हाथोँ की लकीरोँ को भी बदलते देखा ।
अपने हृदय को तो अभी तक पहचानने मेँ सफलता नही मिल सका ।
हे मेरे प्यारे दोस्तोँ इसे आत्म प्रसँशा ना जानकर "परमात्मा की शरणागति" का प्रसाद जानिएगा जिसे आप मित्रोँ मेँ बाँटने का प्रयास कर रहा हूँ जिससे
आप मित्रगण भी उस अविनाशी ,सर्वब्यापी परमात्मा की शरण अपना कर अपना जीवन सहज सरल और सुखी बना सकेँ ।
क्योँ कि शाश्वत सुख भौतिक वस्तुओँ से नही बल्कि ज्ञान और भक्ति मेँ ही देखा है ।
मुख्य बात बताना ही भूल गया ।
जगदीश्वर ने गुरू का रिश्ता निभाते हुए ज्ञान प्रदान करते हुए आश्चर्य जनक ढँग से निस्वार्थ सेवा के लिए भी सँकल्पबद्ध कराया जिसके कारण मैने सँगीता से विवाह का आया रिश्ता भी ठुकरा दिया था ।
फिर भी वही सँगीता आज मेरी धर्मपत्नी के रूप मे जानी जाती है ।
उन्ही घटनाओँ को आज आप लोगोँ मे बाँट कर शरणागति की भावना से भावित कर आपके जीवन को सफल बनाने का प्रयास कर रहा हूँ ।
इसलिए सँदेह रहित होकर पुकारिए - "हे समस्त चराचर के स्वामी मैँ अपना सर्वस्व आपको अपर्ण करता हूँ ।"
जगदीश्वर आप मित्रोँ और आपके स्वजनोँ को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।
।।जय जय श्री राधेकृष्णा।।
भगवत कृपा का मूल आधार
🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।
भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
शंका ना करना
ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।
4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।
प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं
ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।
आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।
जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
परमात्मा के प्रति एक बार समर्पण करके तो देखिए
शांति, मुक्ति, प्रेम और आनंद का द्वार सहज खुल जाएगा।
तत्पश्चात
अपने अनुभव और विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य शेयर कीजिएगा
आपका अपना भक्तों का सेवक - प्रभु शरणागत भक्त
_/\_
।।जय श्री हरि।।
1 टिप्पणियाँ
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"भगवद शरण(कृपा)" प्राप्ति हेतु
प्रत्येक शब्द महत्वपूर्ण"
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।